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लेख-निबंध >> औरत का कोई देश नहीं

औरत का कोई देश नहीं

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2008
पृष्ठ :235
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 7014
आईएसबीएन :978-81-8143-985

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औरत का कोई देश नहीं होता। देश का अर्थ अगर सुरक्षा है, देश का अर्थ अगर आज़ादी है तो निश्चित रूप से औरत का कोई देश नहीं होता।...

धार्मिक कट्टरवाद रहे और नारी अधिकार भी रहे यह सम्भव नहीं


नारी-स्वाधीनता, मानवाधिकार, मानवता, मुक्त-चिन्तन, मत व्यक्त करने का अधिकार, गणतन्त्र और धर्ममुक्त जीवनाचरण के साथ धर्म, धर्मान्धता, धार्मिक कुसंस्कार, धार्मिक कानून, धार्मिक शासन वगैरह मं  विरोध सबसे ज़्यादा है। यह विरोध आज का नहीं है जिस दिन से धर्म का आविर्भाव हुआ उसी दिन से। मैं औरत की आज़ादी की बात करूँ और धार्मिक कट्टरवादी मुझसे नाराज़ न हों, मौका पाते ही हमला न करें, ऐसा नहीं हो सकता। कोई-कोई मुझसे सवाल करते हैं-'भई, तुम उन लोगों को खोंचा क्यों मारती हो? उन लोगों को उकसा क्यों देती हो? या इतनी अतिशयता क्यों करती हो? तभी तो वे लोग तुम्हारे नाम फ़तवा जारी करते हैं या हत्या कर डालने को टूट पड़ते हैं।' इसका मतलब तो यह हुआ कि कट्टरवाद की वजह से, औरतें अगर अपने अधिकारों से वंचित होती हैं, तो होती रहें; कट्टरवाद समाज में आतंक फैला रहा है, फैलाये; कट्टरवाद औरतों के पाँवों में जंजीर पहनाता है, तो पहनाये।

औरतों को अँधेरे में कैद रखता है, रखे, लेकिन औरतें अपनी जुबान बन्द रखें। अगर वह अपनी जुबान बन्द नहीं रखेंगी, तो वे लोग फिर नाखुश होंगे, गुस्सा करेंगे, गालियाँ देंगे, पत्थर बरसायेंगे। इसके फलस्वरूप समाज में विशृंखलता सर उठायेगी और ऐसा हरगिज़ नहीं होने दिया जायेगा।

एक ज़माना था जब दुनिया में धर्म का शासन था। उस ज़माने को 'डार्क एजेज' या 'अन्धकार युग' कहा जाता है। ईसाई लोग, औरतों को 'डायन' कह कर उन्हें जीते जी जला कर मार डालते थे। हिन्दू लोग भी औरतों को जीते-जी आग में झोंक कर जला डालते थे, पति के साथ सहमरण के लिए लाचार करते थे। मर्दो का बह-विवाह तो प्रचलित था ही, उत्तराधिकार और मानवाधिकार से औरतों को वंचित रखा जाता था। वे लोग यौन-दासी और बेटा पैदा करने की मशीन के रूप में इस्तेमाल की जाती थीं। औरतों को जीते-जी जलाते भले न हों, लेकिन उन लोगों को सेक्स-दासी और पुरुषों की सम्पत्ति के तौर पर इस्तेमाल करना सभी अन्यान्य धर्मों की तरह इस्लाम का भी आदर्श था। दुनिया में विभिन्न समय में विभिन्न दार्शनिक, युक्तिवादी और मुक्त-चिन्तन में विश्वासी, धार्मिक शासन की समालोचना करते रहे, अपनी जुबान से समता, समानाधिकार की बातें करते रहे और हर युग में, हर समाज में उनकी आवाज़ रोध करने की कोशिश करते रहे। गैलिलिओ गैलिलेई, जियोर्दानो ब्रूनो से ले कर बंगाल के विद्यासागर, राममोहन राय वगैरह सभी लोगों पर हमले हुए। अँधेरे समाज को जिस भी इन्सान ने आलोकित करने की कोशिश की, उनका सिर उतार लेने वाले लोगों का कभी, किसी युग में अभाव नहीं था। आज भी नहीं है।

युक्तिवादी लोगों की अथक मेहनत से अन्यान्य धार्मिक सम्प्रदायों में धीरे-धीरेसारी व्यवस्था हो जाने के बावजूद अधिकांश मुस्लिम अंचल आज भी पिछड़े हुए हैं।

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    अनुक्रम

  1. इतनी-सी बात मेरी !
  2. पुरुष के लिए जो ‘अधिकार’ नारी के लिए ‘दायित्व’
  3. बंगाली पुरुष
  4. नारी शरीर
  5. सुन्दरी
  6. मैं कान लगाये रहती हूँ
  7. मेरा गर्व, मैं स्वेच्छाचारी
  8. बंगाली नारी : कल और आज
  9. मेरे प्रेमी
  10. अब दबे-ढँके कुछ भी नहीं...
  11. असभ्यता
  12. मंगल कामना
  13. लम्बे अरसे बाद अच्छा क़ानून
  14. महाश्वेता, मेधा, ममता : महाजगत की महामानवी
  15. असम्भव तेज और दृढ़ता
  16. औरत ग़ुस्सा हों, नाराज़ हों
  17. एक पुरुष से और एक पुरुष, नारी समस्या का यही है समाधान
  18. दिमाग में प्रॉब्लम न हो, तो हर औरत नारीवादी हो जाये
  19. आख़िरकार हार जाना पड़ा
  20. औरत को नोच-खसोट कर मर्द जताते हैं ‘प्यार’
  21. सोनार बांग्ला की सेना औरतों के दुर्दिन
  22. लड़कियाँ लड़का बन जायें... कहीं कोई लड़की न रहे...
  23. तलाक़ न होने की वजह से ही व्यभिचार...
  24. औरत अपने अत्याचारी-व्याभिचारी पति को तलाक क्यों नहीं दे देती?
  25. औरत और कब तक पुरुष जात को गोद-काँख में ले कर अमानुष बनायेगी?
  26. पुरुष क्या ज़रा भी औरत के प्यार लायक़ है?
  27. समकामी लोगों की आड़ में छिपा कर प्रगतिशील होना असम्भव
  28. मेरी माँ-बहनों की पीड़ा में रँगी इक्कीस फ़रवरी
  29. सनेरा जैसी औरत चाहिए, है कहीं?
  30. ३६५ दिन में ३६४ दिन पुरुष-दिवस और एक दिन नारी-दिवस
  31. रोज़मर्रा की छुट-पुट बातें
  32. औरत = शरीर
  33. भारतवर्ष में बच रहेंगे सिर्फ़ पुरुष
  34. कट्टरपन्थियों का कोई क़सूर नहीं
  35. जनता की सुरक्षा का इन्तज़ाम हो, तभी नारी सुरक्षित रहेगी...
  36. औरत अपना अपमान कहीं क़बूल न कर ले...
  37. औरत क़ब बनेगी ख़ुद अपना परिचय?
  38. दोषी कौन? पुरुष या पुरुष-तन्त्र?
  39. वधू-निर्यातन क़ानून के प्रयोग में औरत क्यों है दुविधाग्रस्त?
  40. काश, इसके पीछे राजनीति न होती
  41. आत्मघाती नारी
  42. पुरुष की पत्नी या प्रेमिका होने के अलावा औरत की कोई भूमिका नहीं है
  43. इन्सान अब इन्सान नहीं रहा...
  44. नाम में बहुत कुछ आता-जाता है
  45. लिंग-निरपेक्ष बांग्ला भाषा की ज़रूरत
  46. शांखा-सिन्दूर कथा
  47. धार्मिक कट्टरवाद रहे और नारी अधिकार भी रहे—यह सम्भव नहीं

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